Deteriorating situation in Bengal
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Editorial: बंगाल के बिगड़ते हालात को रोकना जनता की जिम्मेदारी

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Deteriorating situation in Bengal

It is the responsibility of the people to stop the deteriorating situation in Bengal: कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में एक ट्रेनी डॉक्टर से रेप एवं मर्डर केस में जिस प्रकार के खुलासे हो रहे हैं, वे चौंकाने वाले और एक कथित सभ्य समाज में अपराध के चरम को दर्शाने वाले हैं। सीबीआई इस मामले की जांच कर रही है और बीते दिनों उसने कहा है कि ऐसे इनपुट हैं, जब अस्पताल के अंदर रात के समय पार्टियां होती थी और डॉक्टर अय्यासी करते थे। इस दौरान ट्रेनी डॉक्टर ने उन घटनाओं की फोटो ले ली थी, जिसके बाद से वह आरोपियों के निशाने पर थी। अब यह भी सामने आ रहा है कि अस्पताल के अंदर सीनियर डॉक्टर, जूनियर डॉक्टरों को धमकाते हैं और यह एक रैकेट की तरह है। यानी यहां का सच बाहर आने से रोका जाता है।

इस बीच पूरे देश ने देखा है कि कोलकाता में किस प्रकार ममता सरकार इस मामले को हैंडल करने में विफल रही है। यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण था कि डॉक्टरों ने एक महीने से ज्यादा दिनों तक हड़ताल की और यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। क्या इसी को व्यवस्था कहा जाता है। लोकतंत्र में एक सरकार का गठन जनता की सेवा के लिए होता है, लेकिन इस मामले से यह साबित हो गया कि यहां जनता की सेवा मकसद नहीं है, अपितु वहां घटने वाले अपराध को छिपा कर जनता के दर्द को बढ़ावा देते हुए अपने राजनीतिक हित साधना ही सर्वोपरि है। यह भी कितना दुखद है कि ऐसे कांड जब सामने आते हैं तो मुठ्ठीभर लोग ही बाहर आ पाते हैं और बाकी अपने घरों में टीवी के सामने सिमट जाते हैं या फिर अखबार में खबरें पढक़र और उन पर आह या हू करके अपने दिल को तसल्ली दे लेते हैं। आरजी कर अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर ने उस सच को बाहर लाने की कोशिश की थी, लेकिन इसके बदले में जहां उसकी अस्मत पर चोट हुई वहीं उसे अपनी जान भी गंवानी पड़ी।

दरअसल, इस मामले ने जहां राज्य में व्यवस्था की पोल खोल दी है, वहीं इसके बाद अस्पताल में तोडफ़ोड़ की वारदात एवं राजनीतिक धड़ेबंदी ने इसका अहसास दिला दिया है कि राज्य में हालात बेकाबू हो चुके हैं और न जाने क्यों इस सबके बावजूद राज्य में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का शासन जारी है। पश्चिम बंगाल में ऐसी आपराधिक घटनाएं पहली बार सामने नहीं आई  हैं, हाल ही में संदेशखाली का मामला यहां सुर्खियां बन चुका है वहीं अब एक ट्रेनी डॉक्टर के साथ ऐसा वहशीपन बेहद संगीन और चिंताजनक मामला है। सबसे पहले तो मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस मामले की जांच कोलकाता पुलिस के पास ही बनाए रखी लेकिन फिर हाईकोर्ट ने जब इस संज्ञान लिया और इस मामले को सीबीआई को सौंपा तो राज्य सरकार ने इस पर नाखुशी जाहिर की। अब हाईकोर्ट ने खुद कहा है कि राज्य सरकार पुलिस को भी सुरक्षित नहीं रख पा रही है तो वह उपद्रवियों से किस प्रकार जनता को बचाएगी।

अब इस मामले में टीएमसी और विपक्षी दलों के बीच तलवारें खींची हुई हैं। यानी टीएमसी को इस मामले में भी विपक्षियों का हाथ लग रहा है। वहीं विपक्ष खासकर भाजपा इसे टीएमसी के लोगों द्वारा करने का आरोप लगा रही है। सवाल यही है कि आखिर जिसके पास पुलिस-प्रशासन खुद है, जिसकी जिम्मेदारी व्यवस्था कायम रखने की है, वह खुद इतना विवश कैसे हो गया है। टीएमसी के शासनकाल में उपद्रव, विवाद, हंगामा, हिंसा आदि की ही खबरें सामने आती रही हैं। मां, मानुष, माटी के नाम पर भावनात्मक मोहरे फेंक कर जनता को गुमराह करके सत्ता में बैठने वाले लोगों के खिलाफ जनता अगर खड़े होने का साहस दिखाती है तो अराजक तत्व उन्हें रोक देते हैं। हिंसा को उकसाने वाले राजनीतिक ही होते हैं, जोकि किसी भी दल से हो सकते हैं, लेकिन जलता बंगाल है और यहां की जनता यह भी नहीं समझ पाती। जिस वामपंथ से लड़ कर टीएमसी ने राज्य में सत्ता परिवर्तन किया अब उसी टीएमसी को सत्ता से हटाने के लिए विपक्ष अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद सफल नहीं हो पा रहा है।

राज्य सरकार की जिम्मेदारी प्रत्येक नागरिक को जहां सुरक्षा प्रदान करने की है, वहीं प्रत्येक राजनीतिक विचारधारा से जुड़े व्यक्ति को भी सुरक्षित माहौल देने की है, लेकिन राज्य में लग रहा है, जैसे उपद्रवियों और एक राजनीतिक दल विशेष के कार्यकर्ताओं को इसका एजेंडा दिया जा चुका है कि कैसे विरोधी दलों के लोगों को सबक सिखाना है। यह बेहद आपत्तिजनक और राज्य के लोगों के दिलों में असुरक्षा का भाव भरना है। दरअसल, प्रदेश की जनता को इसका अहसास होना चाहिए कि बंगाल के बिगड़ते हालात को रोका जाए। 

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